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वृंदावन बांके बिहारी मंदिर अब ट्रस्ट के अधीन! जानिए पूजा–व्यवस्था से लेकर प्रबंधन में क्या–क्या बदलाव होंगे?

योगी सरकार ने बांके बिहारी मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाया, पूजा से प्रबंधन तक होंगे बदलाव। जानिए सरकार की मंशा और विवाद की जड़ें।
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Vrindavan Banke Bihari Mandir Trust: वृंदावन के ऐतिहासिक श्री बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन अब एक नए ट्रस्ट के हाथों में होगा। योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस मंदिर के लिए 'श्री बांके बिहारीजी मंदिर न्यास' का गठन कर दिया है, जिसमें 11 नामित और 7 पदेन सदस्य होंगे। राज्यपाल द्वारा जारी अध्यादेश में साफ किया गया है कि मंदिर की सदियों पुरानी धार्मिक परंपराओं में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा, लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था, श्रद्धालु सुविधाओं और वित्तीय पारदर्शिता को नए सिरे से संगठित किया जाएगा। यह फैसला क्या वाकई मंदिर के विकास में मददगार साबित होगा, या फिर विवादों को जन्म देगा?

नए ट्रस्ट में किसको शामिल किया जाएगा?

नए ट्रस्ट में सनातन धर्म से जुड़े विद्वान, संत, मठाधीश और प्रशासनिक अधिकारी शामिल होंगे। इसमें तीन प्रमुख वैष्णव संप्रदायों के प्रतिनिधि, तीन अन्य सनातन परंपराओं के विद्वान और तीन शिक्षाविद् या समाजसेवी होंगे। साथ ही, स्वामी हरिदास के वंशजों में से दो सदस्यों को भी ट्रस्ट में जगह दी गई है।

पदेन सदस्यों में मथुरा के जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक और ब्रज तीर्थ विकास परिषद के अधिकारी शामिल हैं। हालांकि, यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी गैर-हिंदू व्यक्ति ट्रस्ट का सदस्य नहीं बन सकेगा। क्या यह व्यवस्था धार्मिक पवित्रता बनाए रखेगी, या फिर इसे राजनीतिक हस्तक्षेप माना जाएगा?

पूजा-अर्चना से लेकर दर्शन व्यवस्था में क्या होगा बदलाव?

अध्यादेश के मुताबिक, ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य मंदिर की परंपराओं को बिना बदलाव के बनाए रखना है। हालांकि, कुछ नई व्यवस्थाएं भी लागू होंगी:

दर्शन समय का निर्धारण – ट्रस्ट अब श्रद्धालुओं के लिए दर्शन के समय को व्यवस्थित करेगा।

पुजारियों की नियुक्ति और वेतन – अब पुजारियों का चयन और उनके वेतन का प्रबंधन ट्रस्ट करेगा।

सुरक्षा और सुविधाएं – श्रद्धालुओं की सुरक्षा और बेहतर व्यवस्था के लिए नए प्रबंध किए जाएंगे।

संपत्ति प्रबंधन – मंदिर की संपत्तियों की खरीद-बिक्री के लिए 20 लाख रुपये तक का अधिकार ट्रस्ट को होगा, लेकिन इससे अधिक राशि पर सरकार की मंजूरी जरूरी होगी।

क्या योगी सरकार का फैसला माना जाए सरकारी हस्तक्षेप?

सरकार ने दावा किया है कि यह ट्रस्ट पूरी तरह स्वायत्त होगा और मंदिर के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। लेकिन, विपक्ष और कुछ धार्मिक समूहों ने इसे सरकार के 'मंदिरों पर कब्जे' की रणनीति बताया है। उनका कहना है कि पहले काशी विश्वनाथ और अयोध्या राम मंदिर के बाद अब बांके बिहारी मंदिर को भी सरकारी नियंत्रण में लिया जा रहा है। हालांकि, सरकार का कहना है कि यह कदम भ्रष्टाचार रोकने और बेहतर प्रबंधन के लिए उठाया गया है।

क्या श्रद्धालुओं के हित में लिया गया है फैसला?

बांके बिहारी मंदिर के ट्रस्ट गठन का फैसला एक बड़ा प्रशासनिक बदलाव ला सकता है। अगर इसे पारदर्शिता और बेहतर व्यवस्था के लिए लागू किया गया है, तो यह श्रद्धालुओं के लिए फायदेमंद होगा। लेकिन, अगर इसे राजनीतिक या सरकारी हस्तक्षेप का जरिया बनाया गया, तो यह विवादों को जन्म दे सकता है। अब देखना यह है कि क्या यह ट्रस्ट मंदिर की पवित्रता और प्रशासनिक दक्षता के बीच सही संतुलन बना पाएगा? एक बात तय है कि वृंदावन की आस्था और भक्ति का केन्द्र, बांके बिहारी मंदिर, अब नए दौर में प्रवेश कर चुका है!

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